Sunday, August 23, 2009

धनिये की लीद खाकर गा रहे हैं जय हो! जय हो!

सिनेमा वाले भले ही जय हो! जय हो! गाते हुए ऑस्कर कमाते रहें, अर्थशास्त्री भले ही विश्वव्यापी मंदी में भारत में 8 प्रतिशत की विकास दर रहने की गारंटी देते हुए लोगों को खुश करते रहे किंतु इतिहास गवाह है कि पिसे हुए धनिये में मिली हुई गधे की जितनी लीद हमने अल्लााउद्दीन खिलजी के काल में नहीं खाई, मुहम्मद बिन तुगलक के काल में नहीं खाई, रानी विक्टोरिया के काल में नहीं खाई, उससे कहीं अधिक गधे की लीद हम अपने ही शासनकाल में अथार्त बासठ साल में लोकतंत्र में खा चुके हैं। धनिये में मिली हुई लीद ही क्यों, यूरिया मिला हुआ दूध, वाशिंग पाउडर और घिया पत्थर मिला हुआ मावा, पशुओं की चर्बी मिला हुआ घी, पपीते के बीच मिली हुई काली मिर्च, मोम के पुते हुए सेब, पॉलिशों से चुपड़ी हुई दालें, हरे रंग से रंगी गई किशमिशें भी हम डकार चुके हैं। केवल खाने की चीजें ही नकली नहीं है। क्रिकेट के मैदानों में दिखने वाला देश प्रेम भी नकली है। आभूषणों का सोना भी नकली है। जेब में रखे हुए नोट भी नकली हैं। आज देश में एक लाख सत्तर हजार करोड़ रूपए की नकली मुद्रा से आम आदमी की जेब ठसाठस भरी है किंतु आसमान से पानी की बूंद तक नहीं बरसती। धरती का गर्भ निचुड़ चुका है, नदियां सूख चुकी है, ग्लेशियर गायब हो चुके है। नहरों में पानी नहीं आ रहा। दक्षिण भारत में किसान आत्महत्या कर रहे हैं, बांधों से बिजली नहीं बन रही। फिर भी इन सारे दुखों से बेपरवाह, दूर कहीं किसी कृत्रिम स्वप् लोक में भारत के निर्धन लोग नैनो कार में बैठकर घूमने का सपना देख रहे हैं। मुहम्मद बिन तुगलक ने चांदी के सिक्कों के स्थान पर ताम्बे के सिक्के चलाये थे। उन दिनों भी नकली सिक्के बनते थे। सो जनता ने अपने घरों में ताम्बे के नकली सिक्के तैयार करके बादशाह के खजाने में जमा करवा दिये और उनके बदले में चांदी के असली सिक्के ले लिये। थोड़े दिनों बाद मुहम्मद बिन तुगलक को ज्ञात हुआ कि सरकारी खजाने में ताम्बे के नकली सिक्कों का ढेर लग गया है और जनता उन सिक्कों को लेने से मना कर रही है। तुगलकी फरमान फिर जारी हुआ । सिपाही घरों में घुस कर सारे असली सिक्के छीन लाये। जनता के हाथ न असली मुद्रा रही न नकली। बासठ साल के परिपक्व लोकतंत्र में तो ऐसा किया नहीं जा सकता। सो बैंकों की एटीएम मशीनें अपने पेट में नकली नोट छिपाये बैठी है और ईंट का चूरा मिली हुई लाल मिर्च और अधिक लाल होकर सौ, सवा सौ रूपये किलो हो गई। हल्दी और भी पीली पड़कर एक सौ दस रूपये किलो हो गई। सब्जियां रसोईघरों तक पहुंचने की बजाय दुकानों में पड़ी पड़ी ही सूख रही हैं। हर शहर में कोचिंग सेंटर खुल गये हैं, जिनकी कृपा से घर-घर में इंजीनियर तैयार हो रहे हैं। सबका स्टैण्डर्ड बढ़ गया है। चारों और जय हो, जय हो हो रही है। यही कारण है कि न्यूयार्क टाइम्स की वरिष्ठ पत्रकार हीदर टिमोन्स ने कहा कि आज का हिन्दुस्तान अमरीका से अलग नहीं है किंतु मेरी समङा में उन्होंने गलत कहा। आज का हिन्दुस्तान तो अमरीका से बहुत आगे निकल चुका है। यहां राखी सांवत टेलीविजन के पर्दे पर स्वयंवर रचा रही है और हम धनिये में मिली गधे की लीद खाकर जय हो! जय हो! गा रहे हैं। अमरीका में ऐसा कहां होता है!

3 comments:

  1. तो भाई साहब धनिये की लीद लोग बाबा आदम के जमाने से खाते आ रहे है . तुगलक ने तो बाद में खाई होगी हा हा आनंद आ गया आपकी पोस्ट पढ़कर अच्छा खासा व्यंग्य ही रहा है .

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  2. राखी सांवत टेलीविजन के पर्दे पर स्वयंवर रचा धनिये में मिली गधे की लीद खाकर जय हो! जय हो! गा रहे हैं अमरीका में ऐसा होता है

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  3. वाह, क्या बात है!
    दीपक भारतदीप

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