Sunday, September 6, 2009

घर आया, माँ जाया बराबर!

जोधपुर। नागाणा में जो कुछ भी 5 सितम्बर को श्रमिकों के बीच हुआ, उसे समझदार आदमियों का काम तो नहीं कहा जा सकता। दोष किसी एक पक्ष को देना व्यर्थ है। हो सकता है किसी एक पक्ष का कम या अधिक दोष रहा हो, हो सकता है कि झगड़े का आरंभ किसी एक पक्ष ने किया हो और दूसरा पक्ष भड़क कर सामने से आया हो। हो सकता है कि इस झगड़े में कोई एक पक्ष अधिक पीड़ित और प्रताड़ित हुआ हो, हमारा उद्देश्य उसकी छानबीन करना नहीं, हमारा उद्देश्य तो इस बीमारी की जड़ को समझना है। यह सच है कि स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व भारत कभी भी एक राजनीतिक इकाई नहीं रहा किंतु उससे भी बड़ा सच यह है कि सांस्कृतिक रूप से यह देश सभ्यता के आरंभ से ही एक रहा है और खण्ड-खण्ड क्षरित होता हुआ आज अपने सबसे छोटे आकार में विद्यमान है। इसकी सांस्कृतिक एकता को स्थापित करने के लिये अयोध्या के राजा रामचंद्र ने धुर दक्षिण में रामेश्वरम् का ज्योतिर्लिंग स्थापित किया। मथुरा के राजा श्रीकृष्ण ने समुद्र के किनारे द्वारिका नगरी स्थपित की। अशोक ने महेंद्र और संघ मित्रा को पड़ौसी देशों में शांति का संदेश देकर भेजा आदिगुरु शंकराचार्य ने चारों दिशाओं में चार मठ स्थापित किये। सुभाषचंद्र बोस जब कलकत्ता से निकल कर बर्लिन, टोकियो और सिंगापुर की खाक छानते फिर रहे थे और आजाद हिंद फौज के लिये गोला बारूद जुटाते फिर रहे थे तो क्या वे केवल बंगाल को आजाद करवाने के लिये ऐसा कर रहे थे? हरिद्वार, प्रयाग, पुष्कर, उज्जैन, गया और जगन्नाथ पुरी एक दूसरे से सैंकड़ों किलोमीटर दूर हैं किंतु सबके लिये एक समान रूप से अपने हैं। फिर यह तेरा मेरा कैसा? जब देश 562 सम्प्रभु रियासतों और 11 ब्रिटिश प्रांतों में बंटा हुआ था, तब भी इस तरह का अपना-पराया नहीं था, तब भी हम भारत माता की जय बोलकर आनंदित होते थे, फिर आज एक संविधान और एक ध्वज के तले स्थानीय और बाहरी का झगड़ा कैसे खड़ा हो गया!
नागाणा में स्थानीय कर्मचारी हों या फिर किसी अन्य प्रांत से आये हुए, हैं तो सब भारत माता के पुत्र ही, फिर भीतर -बाहर का प्रश्न क्यों? जब एक माता के पुत्र लड़ते हैं तो माता को कष्ट होता है। जो पुत्र अपनी माता के कष्ट का अनुभव नहीं करते, वे कैसे पुत्र हैं? भारत माता के प्रति प्रेम क्या केवल फिल्मों में दिखाने के लिये है या फिर क्रिकेट के मैदानों में गाने के लिये है! जब हम एक देश के नागरिक होकर केवल इसलिये लडेंगे कि कुछ लोग हमारे बीच में दूसरे प्रांत से आ गये हैं, तो सोचिये फिर हमें आस्ट्रेलिया वालों से शिकायत क्यों होनी चाहिये जो सात समंदर पार से आये भारतीयों को केवल इसलिये पीटते हैं कि वे विदेशी हैं? मुझे स्मरण है आज से पच्चीस साल पहले गंगानगर जिले के एक छोटे से गांव की एक पंजाबी स्त्री ने मुझ नितांत अपरिचित का स्वागत यह कह कर किया था- घर आया, माँ जाया बराबर और जब थोड़ी देर बाद मैं उससे विदा हुआ तो उसने कहा- तेरे बच्चों के गांव बसें। आज भी मैं उस स्त्री के बारे में सोचता हूँ तो श्रद्धा से अभिभूत हो जाता हूँ। कहाँ गई हमारे देश की ऐसी अनोखी सांस्कृतिक विरासत? कौन निगल गया उसे? नागाणा में बाहर से आये जिन श्रमिकों को उनके परिजनों ने यहां भेजा है, राजस्थानियों की भारतीय संस्कृति में गहरी आस्था पर विश्वास करके ही भेजा है। हम उस विश्वास को बनायें। आज लाखों राजस्थानी भारत के कौने-कौने में बसे हुए हैं, लाखों राजस्थानी दुनिया के दूसरे देशों में बसे हुए हैं। सोचिये वे कितने शर्मसार हुए होंगे जब उन्होंने राजस्थान की धरती पर स्थानीय बाहरी का झगड़े के बारे में पढ़ा होगा।

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