Monday, May 24, 2010

हैलो सर ! मैं ढगला राम बोल रहा हूं!

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
मोबाइल की घण्टी बजती है। साहब गहरी नींद में हैं। बड़ी मुश्किल से आज नींद लेने का समय मिला है। पिछली दो रातों से जिले भर के गांवों के दौरे पर थे। दिन-दिन भर चलने वाली बैठकें, जन समस्याएं, ढेरों शिकायती पत्र, लम्बे चौड़े विचार-विमर्श और फिर रात में बैठकर सैंकड़ों रिपोर्टें पढ़कर उन पर टिप्पणियां करते-करते हालत पतली हो जाती है। रात को भी देर से ही बिस्तर पर आ पाते हैं। उस पर ये मोबाइल की घण्टी। वे मन में झुंझलाते हैं किंतु हैलो बोलते समय पूरी तरह शांत रहते हैं।
हैलो सर ! मैं ढगला राम बोल रहा हूँ ! दूसरे छोर से आवाज आती है।
कहाँ से ? साहब की नींद अब तक काफी उड़ चुकी है।
सर, मैं सरपंच पति हूँ।
जी बताइये, क्या सेवा कर सकता हूँ ? मन की खीझ को छिपाकर साहब जवाब देते हैं।
हमारे गांव में तीन दिन से पानी नहीं आ रहा और अभी बिजली भी नहीं आ रही।
अच्छा ! आपने अपने क्षेत्र के बिजली और पानी विभागों के जेइएन्स से बात की क्या?
नहीं की।
क्यों?
उनसे बात करने का कोई फायदा नहीं है, पानी वाले जेईएन कहेंगे कि पाइप लाइन फूटी हुई है प्रस्ताव एसई आॅफिस भेज रखा है और बिजली वाले कहेंगे कि पीछे से गई हुई है।
तो अपने क्षेत्र के सहायक अभियंताओं से बात करें।
उनसे भी बात करने का कोई फायदा नहीं है।
क्यों?
वो कहेंगे कि जेइन से बात करो।
तो आप अपने क्षेत्र के अधिशासी अभियंता या अधीक्षण अभियंता से बात करते। जलदाय विभाग और बिजली विभाग के किसी भी अफसर से बात करते। आपने सीधे ही मुझे फोन लगा दिया।
सर मैंने सोचा कि आप जिले के मालिक हैं। सारे विभाग आपके नीचे हैं, इसलिये आपसे ही कह देता हूँ, अब जिसको कहना हो, आप ही कहिये। हमारे यहां तो अभी बिजली चालू होनी चाहिये और कल सुबह पानी आना चाहिये। यदि आप सुनवाई नहीं करते हैं तो मैं मंत्रीजी को फोन लगाता हूँ।
इतनी रात में! कितने बजे हैं अभी?
रात के दो बज रहे हैं।
लोगों को सोने तो दो, दिन निकल जाये तब बात करना।
आप लोग तो वहां एसी में आराम से सो रहे हैं, आपको मालूम है हम कितनी तकलीफ में हैं। कल सुबह पानी आ जायेगा या मैं मंत्रीजी को फोन लगाऊँ ?
अरे यार...... अच्छा सुबह बात करना, सुबह ही कुछ हो सकेगा।
सुबह-वुबह कुछ नहीं। आप जवाब हाँ या ना में दीजिये।
साहब झुंझलाकर फोन काट देते हैं, उनकी इच्छा होती है कि फोन को स्विच आॅफ करके सो जायें किंतु कर नहीं पाते, कौन जाने कब एमरजेंसी कॉल आ जाये। वे फिर से सोने का प्रयास करते हैं किंतु सो नहीं पाते। वैसे भी ब्लड प्रेशर और शुगर के पेशेंट हैं। काफी देर करवटें बदलने के बाद मोबाइल में टाइम देखते हैं। चार बजने वाले हैं। वे उठकर मार्निंग वाक के लिये तैयार होते हैं। अभी वे पैण्ट पहनते ही हैं कि मोबाइल फिर से बजता है। हैलो सर! मैं कोजाराम बोलता हूँ। हमारे यहाँ ........। साहब मोबाइल हाथ में लेकर घर से बाहर निकल लेते हैं। जब से मोबाइल फोन आया है, साहब की रात इसी तरह कटती है।

Monday, May 17, 2010

मुख्यमंत्री का जादू चल गया!

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
इसी 12 फरवरी की बात है जब गोकुलभाई भट्ट के 113वें जन्म दिवस पर आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वक्तव्य दिया था कि शादियों में धन का भौण्डा प्रदर्शन करने वाले बेशर्म हैं। महंगी शादियों में जाकर मैं स्वयं भी शर्मसार हो जाता हूँ। शादियों में 10-10 हजार लोगों का खाना, और एक-एक प्लेट हजार रुपये की! लोग एक-एक कार्ड 500 से 2000 रुपये तक का छपवाते हैं! ऐसे लोग जब शानो शौकत का प्रदर्शन करते हुए महंगी गाड़ियों में विवाह के कार्ड देने आते हैं तो मूड खराब हो जाता है! मुख्यमंत्री के ये शब्द ऐतिहासिक हैं जो शताब्दियों तक स्मरण रखे जाने के योग्य हैं। ये शब्द आज मुझे अचानक ही फिर से याद आ गये।
बात यह हुई कि इस बार अप्रेल-मई माह में मेरे पास विवाह के 10 वैवाहिक निमंत्रण आये हैं, यद्यपि मैंने एक नियम बना रखा है कि जब तक सगे-सम्बन्धी अथवा पारिवारिक मित्र के यहां विवाह न हो, मैं विवाह समारोह में नहीं जाता, इसलिये इस बार भी मैं, एक भी विवाह में नहीं गया किंतु इस बार मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि मेरे पास जो 10 निमंत्रण पत्र आये, उन सभी का आकार अपेक्षाकृत काफी कम था। तो क्या, मुख्यमंत्री का जादू चल गया! कार्डों के आकार छोटे होने लगे!वास्तव में यह देखकर हैरानी होती है और ग्लानि भी होती है कि जब भारत सरकार का योजना आयोग यह कह रहा है कि इस देश में 38 प्रतिशत परिवार गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, उनके घरों में दोनों समय चूल्हा नहीं जलता, तब कुछ लोग दस-दस हजार लोगों को भोजन करवाते हैं! मानो वैवाहिक समारोह नहीं करके शक्ति प्रदर्शन कर रहे हों!
लगे हाथों आजकल करोड़पतियों के विवाहों में चले नये प्रचलन की भी बात कर ली जाये। अमरीका और यूरोपीय देशों में रहने वाले कोट्याधिपति भारतीयों में आजकल नया ट्रेंड चला है। वे अपने बच्चों के विवाह के लिये भारत आते हैं। वैवाहिक समारोह के लिये कल्चरल हैरिटेज घोषित पुराने किलों और हवेलियों को किराये पर लेते हैं। वे पाँच-दस दिन उनमें ठहरते हैं। इस दौरान उस किले या हवेली में केवल वे कोट्याधिपति लोग और उनके निकट रक्त सम्बन्धी अथवा पारिवारिक मित्र ही प्रवेश कर सकते हैं। इस दौरान पूरा वातावरण पारिवारिक होता है। कोई भी दो चेहरे वहाँ ऐसे नहीं होते, जो एक दूसरे के लिये अपरिचित हों। किसी तरह का शक्ति प्रदर्शन, भीड़-भाड़, रेला-ठेला, धक्का-मुक्की और प्लेटों की खींचतान नहीं होती। इस प्रचलन को देखकर मेरे मस्तिष्क में सदैव यह प्रश्न उठता है- जब वे इतने पैसे वाले होकर भी अपने विवाह समारोह को इतने कम लोगों तक सीमित रख सकते हैं तो मध्यम आय वर्ग के लोग क्यों नहीं! पैसे वालों और समाज के ताकतवर लोगों को सोचना चाहिये कि जब राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर जैसे बड़े-बड़े राजकुमार समाज के हित के लिये अपने महलों को छोÞडकर जंगलों और युद्ध के मैदानों में चले गये। उन्होंने सोने के सिंहासन त्यागकर काषाय वस्त्र अथवा वीरवेश धारण कर लिये तब ऐसी कौनसी बाधा है जो हमें उनके आदर्शों को अपनाने से रोकती है! संसार का ऐसा कौनसा धर्म है जिसमें सादा जीवन अपनाने पर जोर नहीं दिया गया हो!

Friday, May 14, 2010

सामाजिक चिंता का विषय होने चाहिए सगोत्रीय विवाह !

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
सारी दुनिया मानती है कि परमात्मा ने सबसे पहले एक स्त्री और एक पुरुष को स्वर्ग से धरती पर उतारा। हम उन्हें एडम और ईव, आदम और हव्वा तथा आदिमनु और इला (सतरूपा) के नाम से जानते हैं। उन्हीं की संतानें फलती-फूलती हुई आज धरती पर चारों ओर धमचक मचाये हुए हैं। उन्हीं की संतानों ने अलग-अलग रीति-रिवाज और आचार-विचार बनाये। सभ्यता का रथ आगे बढ़ने के साथ-साथ रक्त सम्बन्धों से बंधे हुए लोग विभिन्न समाजों, संस्कृतियों, धर्मों और देशों में बंध गये। इस बंधने की प्रक्रिया में ही उनके दूर होने की प्रक्रिया भी छिपी थी। यही कारण है कि हर संस्कृति में अलग तरह की मान्यताएं हैं। इन मान्यताओं में अंतर्विरोध भी हैं, परस्पर टकराव भी है और एक दूसरे से सीखने की ललक भी है। भारतीय सनातन संस्कृति में सगोत्र विवाह न करने की परम्परा वैदिक काल से भी पुरानी है। वैज्ञानिक भी मानते हैं कि निकट रक्त सम्बन्धियों में विवाह होने से कमजोर संतान उत्पन्न होती है। सामाजिक स्तर पर भी देखें तो सगोत्रीय विवाह न करने की परम्परा से समाज में व्यभिचार के अवसर कम होते हैं। एक ही कुल और वंश के लोग मर्यादाओं में बंधे होने के कारण सदाचरण का पालन करते हैं जिससे पारिवारिक और सामाजिक जटिलताएं उत्पन्न नहीं होतीं तथा संस्कृति में संतुलन बना रहता है। यही कारण है कि सदियों से चली आ रही परम्पराओं के अनुसार हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में जातीय खांपों की पंचायतें सगोत्रीय विवाह को अस्वीकार करती आई है तथा इस नियम का उल्लंघन करने वालों को कठोर दण्ड देती आई है। कुछ मामलों में तो मृत्युदण्ड तक दिया गया है। भारतीय संविधान के अनुसार किसी भी व्यक्ति को मृत्युदण्ड अथवा किसी भी तरह का दण्ड देने का अधिकार केवल न्यायिक अदालतों को है। फिर भी परम्परा और सामाजिक भय के चलते लोग, जातीय पंचायतों द्वारा दिये गये मृत्यु दण्ड के निर्णय को छोड़ कर अन्य दण्ड को स्वीकार करते आये हैं। इन दिनों हरियाणा में सगोत्रीय विवाह के विरुद्ध आक्रोश गहराया है तथा कुछ लोग सगोत्रीय विवाह पर कानूनन रोक लगाने की मांग कर रहे हैं। जबकि सगोत्रीय विवाह ऐसा विषय नहीं है जिसके लिये कानून रोक लगाई जाये। हजारों साल पुरानी मान्यताओं और परम्पराओं के चलते यह विषय वैयक्तिक भी नहीं है कि जब जिसके जी में चाहे, वह इन मान्यताओं और परम्पराओं को अंगूठा दिखा कर सगोत्रीय विवाह कर ले। वस्तुत: यह सामाजिक विषय है और इसे सामाजिक विषय ही रहने दिया जाना चाहिये। इसे न तो कानून से बांधना चाहिये और न व्यक्ति के लिये खुला छोड़ देना चाहिये। सगोत्रीय विवाह का निषेध एक ऐसी परम्परा है जिसके होने से समाज को कोई नुकसान नहीं है, लाभ ही है, इसलिये इस विषय पर समाज को ही पंचायती करनी चाहिये। जातीय खांपों की पंचायतों को भी एक बात समझनी चाहिये कि देश में कानून का शासन है, पंच लोग किसी को किसी भी कृत्य के करने अथवा न करने के लिये बाध्य नहीं कर सकते। उन्हें चाहिये कि वे अपने गांव की चौपाल पर बैठकर सामाजिक विषयों की अच्छाइयों और बुराइयों पर विचार-विमर्श करें तथा नई पीढ़ी को अपनी परम्पराओं, मर्यादाओं और संस्कृति की अच्छाइयों से अवगत कराते रहें। इससे आगे उन्हें और कुछ करने की आवश्यकता नहीं है। जोर-जबर्दस्ती तो बिल्कुल भी नहीं।

Sunday, May 2, 2010

काश माधुरी ने मोहनलाल की जीवनी को पढ़ लिया होता !

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
यदि भारतीय राजनयिक माधुरी गुप्ता ने मोहनलाल भास्कर की जीवनी पढ़ ली होती तो आज वह सींखचों के पीछे न बंद होती। मोहनलाल 1965 के भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान के आणविक केन्द्रों की जानकारी एकत्रित करने के लिये गुप्त रूप से पाकिस्तान गये थे। ये वे दिन थे जब जुल्फिाकर अली भुट्टो ने यू एन ओ में यह वक्तव्य देकर पाकिस्तानियों के मन में भारतीयों के विरुद्ध गहरा विष भर दिया था कि वे दस हजार साल तक भारत से लडेंगे। मोहनलाल पाकिस्तान में इस कार्य के लिये जाने वाले अकेले न थे, उनका पूरा नेटवर्क था। दुर्भाग्य से उनके ही एक साथी ने रुपयों के लालच में पाकिस्तानी अधिकारियों के समक्ष मोहनलाल का भेद खोल दिया और वे पकड़ लिये गये।
मोहनलाल पूरे नौ साल तक लाहौर, कोटलखपत, मियांवाली और मुलतान की जेलों में नर्क भोगते रहे। पाकिस्तान के अधिकारी चाहते थे कि मोहनलाल पाकिस्तानी अधिकारियों को उन लोगों के नाम-पते बता दें जो भारत की तरफ से पाकिस्तान में रह कर कार्य कर रहे हैं। पाकिस्तानी अधिकारियों के लाख अत्याचारों के उपरांत भी मोहनलाल ने उन्हें कोई जानकारी नहीं दी। पाकिस्तान की जेलों में मोहनलाल को डण्डों, बेंतों और कोड़ों से पीटा जाता था। उन्हें नंगा करके उन पर जेल के सफाई कर्मचारी छोड़ दिये जाते थे जो उन पर अप्राकृतिक बलात्कार करते थे। छ:-छ: फौजी इकट्ठे होकर उन्हें जूतों, बैल्टों और रस्सियों से पीटते थे। इस मार से मोहनलाल बेहोश हो जाते थे फिर भी मुंह नहीं खोलते थे।
मोहनलाल को निर्वस्त्र करके उल्टा लटकाया जाता और उनके मलद्वार में मिर्चें ठंूसी जातीं। उन्हें पानी के स्थान पर जेल के सफाई कर्मचारियों और कैदियों का पेशाब पिलाया जाता। जेल के धोबियों से उनके कूल्हों, तलवों और पिण्डलियों पर कपड़े धोने की थापियां बरसवाई जातीं। इतने सारे अत्याचारों के उपरांत भी मोहनलाल मुंह नहीं खोलते थे और यदि कभी खोलते भी थे तो केवल पाकिस्तानी सैनिक अधिकारियों के मुंह पर थूकने के लिये। इस अपराध के बाद तो मोहनलाल की शामत ही आ जाती। उन्हें पीट-पीटकर बेहोश कर दिया जाता और होश में लाकर फिर से पीटा जाता। उनकी चमड़ी उधड़ जाती जिससे रक्त रिसने लगता। उनके घावों पर नमक-मिर्च रगड़े जाते और कई दिन तक भूखा रखा जाता। फिर भी मोहनलाल का यह नियम था कि जब भी पाकिस्तान का कोई बड़ा सैनिक अधिकारी उनके निकट आता, वे उसके मुँह पर थूके बिना नहीं मानते थे।
पैंसठ का युद्ध समाप्त हो गया। उसके बाद इकहत्तर का युद्ध आरंभ हुआ। वह भी समाप्त हो गया किंतु मोहनलाल की रिहाई नहीं हुई। जब हरिवंशराय बच्चन को मोहनलाल के बारे में ज्ञात हुआ तो उन्होंने भारत सरकार से सम्पर्क करके उनकी रिहाई करवाई। उसके बाद ही भारत के लोगों को मोहनलाल भास्कर की अद्भुत कथा के बारे में ज्ञात हुआ। काश! माधुरी ने भी मोहनलाल भास्कर की जीवनी पढ़ी होती तो उसे भी अवश्य प्रेरणा मिली होती कि भारतीय लोग अपने देश से अगाध प्रेम करते हैं और किसी भी स्थिति में देश तथा देशवासियों से विश्वासघात नहीं करते।