Thursday, August 13, 2009

बिजली के पंख लगाकर उड़ने को तैयार है बौना ड्रेगन ! ( दूसरी किश्त )

सन् 2020 तक चीन अपने विद्युत परिदृश्य में आश्चर्यजनक परिवर्तन करेगा। उसका लक्ष्य संसार की 20 प्रतिशत बिजली के उत्पादन एवं खपत करने का है। उस समय तक वह 1400 से 1500 गीगावाट बिजली का उत्पादन करने लगेगा। जबकि भारत ने अपने लिये अभी सन् 2012 तक का ही लक्ष्य निर्धारित किया है। इस अवधि में भारत की विद्युत उत्पादन क्षमता में केवल 78 गीगावाट बिजली की वृध्दि होगी।
आज चीन संसार का सबसे बड़ा पवन विद्युत उत्पादक देश है और अगले 12 वर्षों में वह इतनी पवन बिजली उत्पादन क्षमता अर्जित कर लेगा कि दुनिया को कोई भी देश उसका मुकाबला नहीं कर सकेगा। उसका लक्ष्य 30 गीगावाट पवन बिजली उत्पादन क्षमता अर्जित करने का है। सौर ऊर्जा के मामले में चीन दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। वह अपने पश्चिमी हिस्से के ग्रामीण क्षेत्रों में सौर ऊर्जा को तेजी से विकसित कर रहा है। कहा जा रहा है कि चीन की सारी छतें सौर ऊर्जा उत्पादक छतों में बदल जायेंगी।
जल विद्युत पैदा करने के मामले में चीन संसार में दूसरे नम्बर पर आता है। चीन में प्रतिवर्ष 328 बिलियन किलोवाट आवर्स बिजली जल विद्युत के रूप में प्राप्त की जा रही है। वर्तमान में वह 700-700 मेगावाट की कुल 26 जल विद्युत उत्पादक इकाईयों का निर्माण कर रहा है जिनकी कुल क्षमता 18.2 गीगावाट होगी। इनमें से कुछ इकाईयाँ पूरी हो चुकी हैं।
इन परियोजनाओं के पूरा होते ही चीन में संसार के सबसे बड़े बांधों की एक शृंखला का निर्माण होगा जिन पर 15.8 गीगावाट विद्युत उत्पादन क्षमता की 25 इकाइयाँ लगाई जायेंगी। इस प्रकार चीन संसार भर में जल विद्युत उत्पादन करने के मामले में सबसे आगे निकल जायेगा। चीन के इस कदम से भारत में चीन की ओर से बहकर आने वाली अधिकांश नदियों का पानी चीन में ही रोक लिया जायेगा जिससे भारत की पन बिजली उत्पादन की क्षमता में गिरावट आयेगी तथा भारत की बहुत बड़ी आबादी के लिये पेयजल एवं सिंचाई जल का अभाव उत्पन्न हो जायेगा।
वर्तमान में चीन में 83.3 ट्रिलियन क्यूबिक फीट गैस के भण्डार खोजे जा चुके हैं किंतु वह प्रतिवर्ष केवल 1.3 ट्रिलियन क्यूबिक फीट गैस का खनन कर रहा है। चीन संसार का सबसे बड़ा कोयला उत्पादक एवं कोयले की खपत करने वाला देश है। चीन में 126.2 बिलियन टन कोल रिजर्व्स का पता लग चुका है जिसमें से प्रतिवर्ष केवल 2.1 बिलियन टन कोयला काम में लिया जा रहा है। इस प्रकार चीन अपने कोयला, गैस एवं पैट्रोलियम पदार्थों के संरक्षण्ा की नीति पर आगे बढ़ रहा है।
प्रतिवर्ष विश्व भर के बाजारों में तेल की जो मांग बढ़ती है उसमें 38 प्रतिशत मांग अकेले चीन की होती है। दुनिया भर में मंदी का दौर आने से पहले वैश्विक बाजार में तेल को महंगा करने का पूरा श्रेय चीन को जाता था। यदि दुनिया भर में मंदी न छा जाती तो आज अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल इतना महंगा होता कि भारतीय अर्थव्यस्था को बहुत करारा झटका झेलना पड़ सकता था। (समाप्त)

1 comment:

  1. Thanks Arshia aliji, I also pray for you. Mohanlal Gupta

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