Saturday, November 28, 2009

कोरिया कमा रहा है भारतीय इसबगोल से !

कोरिया में तैयार रेडियो, टीवी. टेपरिकॉर्डर कम्प्यूटर, मोबाइल चिप, कारों और पानी के जहाजों ने एशियाई, अफ्रीकी और यूरोपीय बाजारों में धूम मचा रखी है किंतु जब से चीन ने अपने यहाँ औद्योगिक क्रांति खड़ी की है, उसने सैंकडों कोरियाई कम्पनियों को अपने देश से बाहर निकाल कर खड़ा कर दिया है। जापानी तकनीक ने भी कोरिया को दुनिया भर के बाजारों में टक्कर दी है। ऐसी स्थिति में कोरिया के समक्ष दो ही उपाय बचे हैं, या तो वह अपनी कम्पनियों को दूसरे देशों में ले जाये या फिर वह कम्पनियाँ अपने ही देश में खड़ी करे और कुछ नये उत्पादों के साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजार में उतरे। कोरिया ने ये दोनों ही उपाय किये। उसने अपनी सैंक ड़ों कम्पनियों को वियतनाम में उतार दिया। चीन से निकाली गई कम्पनियों को वियतनाम ने अपनी शर्तों पर प्रवेश दिया। आज कोरिया भारत से क च्च्ो माल के रूप में ईसबगोल, तिल, आयरन और कॉटन यार्न का जबर्दस्त आयात कर रहा है।
आज से लगभग सत्रह साल पहले मैंने लिखा था कि अमरीका में सुबह के नाश्ते की टेबल पर ईसबगोल के व्यंजनों का प्रचलन तेजी से बढ़ रहा है क्योंकि अमरीकियों में मोटापे की समस्या बढ़ रही है जिसके कारण वहाँ हृदय रोग, डायबिटीज आदि बीमारियों में जबर्दस्त वृद्धि हुई है। ईसबगोल में शरीर से वसा कम करने का अद्भुत गुण है। इसके सेवन से न केवल पेट की आंतें ढंग से काम करती हैं अपतिु शरीर से गंदा कॉलेस्ट्रोल बाहर निकलता है, मोटापा रुकता है और हृदय रोग से बचाव होता है। संसार का सर्वाधिक ईसबगोल भारत में होता है। पश्चिमी राजस्थान और उत्तरी गुजरात इसके बड़े केन्द्र हैं। जालोर, भीनमाल तथा रानीवाडा में सबसे अच्छी किस्म का ईसबगोल होता है। ऊँ झा में ईसबगोल की एशिया की सबसे बड़ी मण्डी है। कोरिया ने अमरीका में ईसबगोल की बढ़ती हुई मांग को पहचाना। उसने भारत से बड़ी मात्रा में ईसबगोल और तिल खरीदना आरंभ किया और उनसे कुकीज और बिस्किट बनाकर अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में उतार दिया। आज पूरे अमरीका में कोरियाई कुकीज का डंका बज रहा है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार की इस मांग को भारतीय व्यवसाई आसानी से कैच कर सकते थे किंतु उन्होंने इस अवसर को पहचाना ही नहीं। कोरिया एक ऐसा देश है जहाँ प्राकृतिक संसाधन न के बराबर उपलब्ध हैं। वह भारत से खरीदे गये कॉटन यार्न में सिंथेटिक रेशा मिलाकर कपड़ा तैयार करता है और दुनिया भर के देशों को बेच रहा है। इसी तरह भारत से खरीदे गये आयरन से वह बड़ी मात्रा में पानी के जहाज, मोटर वाहन और विद्युत उपकरण बनाकर दुनिया भर के बाजारों पर कब्जा बनाये हुए हैं।
हाल ही में कोरिया की अग्रणी कम्पनी पोस्को ने भारत के उड़ीसा प्रांत में लोहे का कारखाना डाला है। कुछ और भी कम्पनियाँ आ रही हैं। स्टील किंग लक्ष्मीनिवास मित्तल ने भी झारखण्ड में इस क्षेत्र में बड़ा निवेश किया है। जब चीन अपने यहाँ से कम्पनियों को निकाल रहा है तो हमें अपने कच्चे माल के निर्यात पर रोक लगाकर देश के भीतर ही माल तैयार करवाने और उसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में खपाना चाहिये। पूर्वी देशों के साथ व्यापार करने वाले जोधपुर के युवा व्यवसाई तरुण जैन बताते हैं कि आज जापान जैसे देश दूसरे देशों में अपनी कम्पनियाँ लगवाने के लिये शून्य ब्याज पर धन उपलब्ध करवा रहे हैं तथा 15 प्रतिशत तक का अनुदान भी दे रहे हैं। सिडबी भी इस कार्य में सहयोग कर रहा है। भारत को इन अवसरों को पहचानना चाहिये और अपने देश के भीतर उपलब्ध श्रम संसाधनों और प्राकृतिक संसाधनों को खपाने के लिये नई औद्योगिक क्रांति को जन्म देने की पहल करनी चाहिये।
blog comments powered by Disqus