Thursday, November 12, 2009

लालसिंह कहां रहता है !

राज्य के सूचना एवं जनसम्पर्क निदेशक डॉ. अमरसिंह राठौड़ बहुपठित व्यक्ति हैं। उन्होंने अपना अधिकांश जीवन पत्रकारों के बीच व्यतीत किया है जिसका अर्थ होता है मानव जीवन और सभ्यता के हर कालखण्ड के अधिक से अधिक निकट रहना। भूतकाल को जान लेना, वर्तमान को हर कोण से परख लेना और समाज के भीतर भविष्य में होने वाली घटनाओं का अनुमान लगा लेना। इतने सारे गहन अनुभव के साथ रविवार को सूचना केन्द्र में डॉ. राठौड़ ने जोधपुर के गणमान्य नागरिकों, समाज सेवियों, उद्योग प्रतिनिधियों एवं मीडिया प्रतिनिधियों के बीच एक चुटुकला सुनाया- एक दिन शराब के नशे में धुत्त एक व्यक्ति ने देर रात में एक घर का दरवाजा खटखटाया। एक वृद्धा के द्वारा दरवाजा खोलने पर उसने पूछा- माताजी! क्या आप जानती हैं कि लालसिंह कहाँ रहता है? वृद्धा ने कहा कि हाँ मैं जानती हूँ किंतु तुम क्यों पूछ रहे हो! तुम तो स्वयं ही लालसिंह हो? इस पर वह व्यक्ति बोला कि हाँ यह तो मैं भी जानता हूँ कि मैं ही लालसिंह हूँ किंतु मुझे अपना घर नहीं मिल रहा। अब मैं किसी का दरवाजा खटखटाकर उससे यह तो नहीं पूछ सकता कि बताईये मेरा घर कहाँ है!
सुनने में यह चुटुकला नितांत अगंभीर लग सकता है किंतु इस चुटुकले में आज के भारतीय समाज की बहुत बड़ी त्रासदी छिपी हुई है। आज हमारे बीच लाखों लालसिंह रहते हैं जो देर रात को नशे में धुत्त होकर घर पहुँचते हैं। घर के लोग उन्हें लेकर चिंतित तो रहते हैं किंतु घर में किसी को उनकी प्रतीक्षा नहीं होती। चिंतित इसलिये कि कहीं वे मार्ग में दुर्घटना के शिकार नहीं हो जायें। प्रतीक्षा इसलिये नहीं क्योंकि वे घर पहुंचते ही अपनी औरत और बच्चों के साथ मारपीट करते हैं। गंदी गालियां देते हैं और घर का पूरा वातावरण खराब कर देते हैं। पत्नी को समझ में नहीं आता कि वह ईश्वर से इस आदमी की लम्बी उम्र की कामना करे या उससे शीघ्र छुटकारा मिलने की। बच्चे जब तक छोटे होते हैं, सहमे हुए रहते हैं, उनकी पढ़ाई बरबाद हो जाती है और व्यक्तित्व कुण्ठित हो जाता है। जब वे बड़े हो जाते हैं तो वे दूसरों के प्रति असहिष्णु और अनुदार हो जाते हैं जो आतंक उनके जीवन में उनके पिता ने मचाया होता है, उस आतंक का प्रतिकार वे दूसरों के जीवन में कष्ट घोलकर करते हैं। अधिकांश बच्चे तो केवल इसलिये शराब पीते हैं क्योंकि उनका पिता भी शराब पीता था। फिर उनके परिवार में भी वही सब कुछ घटित होता है जो उन्होंने अपने पिता के परिवार में देखा और भोगा था। इस प्रकार यह सिलसिला चलता रहता है। नशे में धुत्त सैंकड़ों लालसिंहों को हमने अक्सर सड़क के किनारे अर्द्धबेहोशी की अवस्था में गिरे हुए देखा होगा। कुछ वर्ष पूर्व मेरे एक परिचित परिवार में दसवीं कक्षा के एक बच्चे ने केवल इसलिये जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी क्योंकि उसके पिता ने शराब पीकर उसकी माता को इतना पीटा था कि बच्चे से सहन नहीं हुआ। इस अपराध के लिये वह अपने पिता को किसी भी तरह दण्डित नहीं कर सकता था। इसलिये उसने अपने पिता को दण्डित करने का यह बेहद तकलीफदेह तरीका निकाला। बहुत से हंसते खेलते परिवार इस नर्क की भेंट चढ़ चुके हैं। ठीक ही है कि पहले आदमी शराब पीता है, फिर शराब शराब को पीती है और अंत में शराब आदमी को पी जाती है। डॉ. अमरसिंह राठौड़ की चिंता वाजिब है, हम किसी और को तो लालसिंह बनने से नहीं रोक सकते, कम से कम स्वयं को तो रोकें।

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