Monday, November 16, 2009

यह आग तो हमारा घर भी फूंक देगी

लंदन से जारी हुई लेगटम प्रोस्पेरिटी रिपोर्ट में भारत की जो उज्जवल सामाजिक और पारिवारिक तस्वीर खींची गई है, उसे बदरंग करने के लिये देश के भीतर विगत कई वर्षों से कला एवं संस्कृति की आड़ में, नारी मुक्ति और स्त्री स्वातंत्र्य के नाम पर घिनौने खेल खेले जा रहे हैं। एक दशक पहले दीपा मेहता ने भारतीय महिलाओं में समलैंगिकता की फायर लगाने का प्रयास किया। लखनऊ में गोमती नदी के किनारे इस फिल्म यूनिट का भारी विरोध हुआ। फिल्म के सैट नदी में फैंक दिये गये किंतु दीपा मेहता फिल्म बनाने पर अडी रहीं। उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री रामप्रकाश गुप्ता ने इस यूनिट को पैक एण्ड गो के आदेश दिये। दीपा मेहता यूपी से तो चली गर्इं किंतु यह फिल्म बनकर रही। दीपा मेहता और शबाना आजमी ने इस फिल्म में समलैंगिक गृहणियों की भूमिका निभाई। यह फिल्म कैसा भारत बनाना या दिखाना चाहती थी!
इस तरह की फिल्मों को बनाने वाले, नारी मुक्ति की बात करने वाले, समलैंगिकता का आंदोलन चलाने वाले और देश की नसों में जहर घोलने वाले लोग वही हैं जो हर बात में महात्मा गांधी को ढाल की तरह इस्तेमाल करते हैं। महात्मा गांधी ने तो यह कहा था कि दम्पत्ति संतानोत्पत्ति के लिये ही निकट आयें, अन्यथा ब्रह्मचर्यव्रत का पालन करें। गांधी की दृष्टि में आनंद प्राप्ति के लिये किया गया सैक्स तो हिंसा थी। फिर ये लोग गांधी के देश में, गांधी की बातें करके समलैंगिकता का इतना बड़ा आंदोलन खड़ा करने में कैसे कामयाब हो जाते हैं कि उन्हें कानूनी मान्यता तक मिल जाये!
कुछ और भी ऐसे कानून खड़े किये जा रहे हैं जिनकी आवश्यकता पाश्चात्य जीवन शैली के अभ्यस्त लोगों के लिये तो ठीक होती होगी किंतु भारतीय संस्कृति और समाज में उनके कारण बिखराव आयेगा। ऐसे कानून भारतीय समाज और परिवारों की शांति किस भयानक तरीके से भंग करेंगे इसका अनुमान सहज ही लगाया जा सकता है। एक कानून ऐसा भी है कि जब किसी औरत के साथ कोई सहकर्मी, मित्र या अपरिचित पुरुष घर में आये तो घर के सदस्य उससे यह तक नहीं पूछ सकते कि यह कौन है और तुम्हारे साथ क्यों आया है? नारी स्वातंत्र्य की रक्षा करने के लिये यह कैसा कानून रचा गया है! यह भारतीय परिवारों को बिखेरने और समाज की शांति भंग करने के लिये रचा गया अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र नहीं तो और क्या है!
जब आग दूर लगती है तो हम इस बात से प्रसन्न होते हैं कि चलो अच्छा हुआ हमारा घर तो नहीं जलेगा किंतु विनाशकारी आग कभी स्वत: नहीं रुकती। उसे प्रयास करके रोकना पड़ता है अन्यथा वह एक न एक दिन हमारे घर तक चली ही आती है। सोचिये वह कैसा भारत होगा जिसमें हमारी बहू बेटियाँ, बड़ी-बूढ़ियों से दूधों नहाओ, पूतों फलो का आशीर्वाद लेने की बजाय समलैंगिक यौनाचरण करेगी और कानून से अनुमति मिली हुई होने के कारण हम उन्हें ऐसा करने से रोक भी नहीं सकेंगे! यदि ऐसा हुआ तो फिर लंदन के लेगटम संस्थान और आॅब्जर्वर रिसर्च फाउण्डेशन किस भारत की कैसी तस्वीर प्रस्तुत करेंगे!

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