Tuesday, November 24, 2009

चीन बेच रहा है भारत के पत्थर !

चीनी बौना पूरी दुनिया को सामरिक मोर्चों पर तो नहीं खींच सका किंतु आर्थिक मोर्चों पर उसने पूरी दुनिया के घुटने टिकाने का निश्चय किया है। विगत एक दशक में उसने अपने देश के भीतर इतनी जबर्दस्त आर्थिक तैयारी की है कि अब उसे दुनिया में किसी की परवाह करने की आवश्यकता नहीं है। प्रकृति से उसे विशाल भू-क्षेत्र, विशालतर प्राकृतिक संसाधन और विशालतम मानव जनसंख्या मिली है। उसने अपनी जनसंख्या को बोझ नहीं माना, न ही जनसंख्या के दैत्य को अपने ऊपर हावी होने दिया। उसने जनसंख्या को श्रम संख्या समझा और उन्हें देश के विशाल भू भागों में बन रहे बांधों, कारखानों, सड़कों और खानों में खपा दिया। कुछ दशक पहले तक चीन एक निर्धन देश था किंतु आज उसकी समृद्धि की चकाचौंध से सम्मोहित होकर अमरीकी राष्ट्रपति बराक हुसैन उसके समक्ष लम्बलेट हुए जा रहे हैं। वे ये तक भूल गये हैं कि अमरीका और चीन में सदैव छत्तीस का आंकड़ा रहा है। जोधपुर के युवा व्यवसायी तरुण जैन विगत दो दशकों से चीन, ताइवान, कोरिया, वियतनाम, बैंकाक, हांगकांग, टर्की तथा दुबई आदि देशों से पत्थर और हैण्ड टूल्स के आयात-निर्यात का व्यवसाय करते हैं। व्यापार के सिलसिले में उन्होंने कई बार इन देशों की यात्रा की है। वे बताते हैं कि उनके देखते ही देखते चीन के भीतर इतने जबर्दस्त आर्थिक बदलाव आये हैं कि आँखों से देखे बिना उन बदलावों की कल्पना तक करना कठिन है। एक समय था जब चीन में कोरियाई कम्पनियां काम करती थीं। आज चीन ने उन्हें निकाल बाहर किया है। चीन दुनिया भर के देशों से कच्चा माल खरीद रहा है, उसे अपने यहाँ प्रसंस्करित कर रहा है और दुनिया के दूसरे देशों को निर्यात कर रहा है। चीनियों के काम करने का तरीका इतना जबर्दस्त है कि दुनिया भर के व्यवसायी निर्यात के मोर्चे पर पिछड़ते जा रहे हैं। उदाहरण के लिये चीन के पत्थर व्यवसाय को देखा जा सकता है। भारत में अच्छी गुणवत्ता के ग्रेनाइट, संगमरमर, सैण्डस्टोन आदि कई प्रकार के पत्थर उपलब्ध हैं जिनका राजस्थान से लेकर तमिलनाडु तक बड़े स्तर पर उत्खनन होता है। भारत के द्वारा दशकों से बड़ी मात्रा में ग्रेनाइट एवं संगमरमर के तैयार स्लैब एवं टाइल आदि उत्पादों का दुनिया भर के देशों को निर्यात किया जाता रहा है। चीन भी पहले भारत से यह सामग्री मंगवाता था किंतु जब चीन ने अपनी जनसंख्या का श्रमिकीकरण किया तो उसने भारत से पत्थर के तैयार उत्पाद मंगवाने के स्थान पर भारत से भारी मात्रा में पत्थर के ब्लॉक मंगवाने आरंभ किये। चीन इस पत्थर से टाइल, स्लैब, दरवाजों की चौखटें, फव्वारे, कुण्डियां आदि बनाकर दुनिया के दूसरे देशों को बेच रहा है। जहाँ पहले भारतीय व्यवसायी अपने देश में तैयार माल दूसरे देशों को बेचते थे आज चीन ने आगे आकर भरतीय व्यवसाइयों को पीछे धकेल दिया है। भारतीय व्यवसाई हैरान हैं कि देखते ही देखते यह क्या हुआ? क्यों भारतीय व्यवसाई, भारतीय पत्थर से भारत के भीतर प्रसंस्करित सामग्री को विश्व के बाजार में नहीं बेच पा रहे? क्यों चीन भारत से पत्थर खरीद कर उसे प्रसंस्करित करके दुनिया के हर देश में बेच पा रहा है? भाव, गुणवत्ताा, समय पर डिलीवरी, भुगतान आदि हर मोर्चे पर भारतीय व्यवसायी चीन से मुँह की खा रहे हैं। भारतीय इसी में खुश हैं कि चलो चीन हमसे पत्थर तो खरीद रहा है जिससे वैदेशिक मुद्रा प्राप्त हो रही है। होना तो यह चाहिये था कि भारत अपने देश से पत्थरों के ब्लॉक्स के निर्यात पर रोक लगाता तथा दुनिया को केवल तैयार सामग्री ही बेचता। इससे भारत के भीतर लोगों को रोजगार मिलता, भारतीय आय में वृद्धि होती तथा चीन अंतर्राष्ट्रीय बाजार से भारतीय व्यवसाइयों को हरगिज नहीं धकेल सकता था।
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