Thursday, January 28, 2010

इट हैपन्स ओनली इन इंडिया!

मोहनलाल गुप्ता
गणतंत्र दिवस पर भी अब बधाई के एस एम एस करने का फैशन चल निकला है। मेरे मोबाइल फोन पर जो ढेर सारे एस एम एस आये, उनमें से एक एस एम एस के शब्द अब तक मेरे मस्तिष्क में चक्कर काट रहे हैं। यह एस. एम. एस. मुझे जोधपुर से ही किसी साथी ने भेजा है जिसमें लिखा है कि हम एक ऐसे मजाकिया देश में रहते हैं जिसमें पुलिस या एम्बुलेंस से पहले पिज्जा घर पहुंचता है और जहाँ बैंकों द्वारा एज्यूकेशन लोन पर 12 प्रतिशत किंतु कार लोन पर 8 प्रतिशत ब्याज दर ली जाती है। वस्तुत: पिछले कुछ सालों से मैं इस बात को बार-बार दोहराता रहा हूँ कि हमारे देश का बाजारीकरण हो रहा है। बाजार हम सबको खाये जा रहा है। सारे रिश्ते, सारी संवेदनायें, मानवीय मूल्य, सामाजिक पर्व, रीति-रिवाज, हमारी गौरवशाली परम्परायें, सब पर बाजार हावी हो रहा है। गणतंत्र दिवस पर मिला यह एस. एम. एस., देश पर हावी होते जा रहे बाजारीकरण को ही व्यक्त करता है। बीड़ी के बण्डल पर गणेशजी तो पिछले कई दशकों से छपते रहे हैं, चोली के पीछे क्या है जैसे भद्दे गीत भी इस देश में डेढ़ दशक पहले करोडों रुपयों का व्यवसाय कर चुके हैं। अब तो परिस्थितियां उनसे भी अधिक खराब हो गई है। देश में पिछले कुछ सालों में हुए स्टिंग आॅपरेशन हमारे देश में बढ़ते लालच की कहानी कहते हैं। पहले इस देश में जनसंख्या का विस्फोट हुआ, फिर लालच का भूकम्प आया और उसके तत्काल बाद बाजार में महंगाई का ज्वालामुखी फूट पड़ा। आज तक जितनी भी वैज्ञानिक प्रगति हुई है, उसे अचानक बाजार ने अपनी चपेट में ले लिया है। रेडियो, टी. वी. और पत्र-पत्रिकाओं का आविष्कार मानो बाजारू वस्तुओं के विज्ञापन दिखाने के लिये ही हुआ है ! मोबाइल फोन पर सारे दिन इस प्रकार के एसएमएस आते रहते हैं- जानिये अपने लव गुरु के बारे में। यदि आप अठारह साल या उससे अधिक उम्र के हैं, तो वयस्क चुटकले पाने के लिये हमें एसएमएम कीजिये। तीन रुपये प्रति मिनट में अपना भविष्य जानिये। अर्थात् धर्म, विज्ञान, अध्यात्म, ज्योतिष सब कुछ बाजार ने निगल लिये हैं। इस देश का राष्ट्रीय खेल हॉकी है, किंतु लोग क्रिकेट के पीछे पागल हैं। शेर इस देश का राष्ट्रीय पशु है किंतु वह जंगलों से गायब हो रहा है। साड़ी इस देश की औरतों की मुख्य पोशाक है किंतु अब वह टीवी के ढेर सारे चैनलों से लेकर सिनेमा के पर्दों और सड़कों के किनारे लगे होर्डिंगों पर निक्कर-बनियान पहने ख़डी है। वह जननी से जनानी बनाई जा रही है और यह सब नारी मुक्ति, नारी स्वातंत्र्य और नारी सशक्तीकरण के नाम पर हो रहा है। स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के भार से अधिक उनकी पीठ पर लदे बस्ते का भार है जिसके बोझ के तले दबकर बचपन ही नहीं बड़े भी आत्महत्या कर रहे हैं।
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