Friday, February 5, 2010

कविता के बिना रोबोट बन जाएगा मनुष्य !

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
प्रख्यात शिक्षाविद् यशपाल ने भारत के वर्तमान परिदृश्य पर करारी टिप्पणी की है। हाल ही में रिलीज हुई एक पुस्तक की भूमिका में उन्होंने लिखा है- तकनीकी शिक्षा पर जोर देने से परिस्थितियां बिगड़ी हैं, यदि व्यक्ति साहित्य, संगीत और दर्शन से दूर रहेगा तो दुनिया शीघ्र ही ऐसे रोबोट्स से भर जायेगी जिनका केवल चेहरा ही मनुष्य जैसा होगा। अधिकांश लोगों का यह दृÞढ विश्वास है कि कविता, संगीत और पेंटिग जैसी सृजनात्मक गतिविधियों से जुÞडेÞ छात्रों के रैगिंग जैसे अपराधों से जुÞड़ने की संभावना कम होती है।
हमारे बच्चे क्यों संवदेनहीन, दु:साहसी और आत्मघाती होते जा रहे हैं, इस प्रश्न का इससे सही उत्तर और कुछ नहीं हो सकता कि हमने उन्हें इंजीनियर, डॉक्टर, चार्टर्ड एकाउंटेंट, प्रशासनिक अधिकारी और व्यवसाय प्रबंधक बनाने के लिये कविता से दूर कर दिया। जैसे जीवन का बसंत यौवन है, वैसे बुद्धि का वसंत कविता है। एक युग वह भी था जब बड़े-बड़े राजा-महाराजा कविता पढन्Þो वालों की पालकियाँ कंधे पर उठाया करते थे और एक समय यह है कि साहित्य, कला, इतिहास और भूगोल जैसे सरस विषय कम अंक लाने वाले छात्र के उपयुक्त समझे जाते हैं। परीक्षा में रट-रटा कर दूसरों से अधिक अंक लाने वाले छात्रों को मेधावी माना जा रहा है। विज्ञान और अर्थशास्त्र के विद्यार्थियों को सुयोग्य तथा साहित्य और कविता पढ़ने वालों को अयोग्य अर्थात् कम बुद्धि वाला छात्र माना जा रहा है। इतिहास गवाह है कि तुलसी, सूर, कबीर, मैथिलीशरण गुप्त जैसे व्यक्ति कविता से जुÞड़ाव के कारण ही दीर्घायु हुए, उन्हें इतना यश मिला कि देश और काल की सीमाओं को लांघ गया। दूसरी ओर भारतेंंदु हरिश्चंद्र जैसे कवि भी हुए जिन्होंने कविता को पाने के लिये अपने पुरखों द्वारा संचित कुबेर का कोष खाली कर दिया। यह सही है कि विज्ञान और अर्थशास्त्र के अध्ययन के बिना संसार का काम नहीं चल सकता किंतु यह भी सही है कि कविता के बिना भी संसार का काम नहीं चल सकता। वह मनुष्य किस काम का जिसके हृदय में कविता नहीं बसती हो। मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है- जो भरा नहीं है भावों से, बहती जिसमें रसधार नहीं, वह हृदय नहीं है, पत्थर है, जिसमें स्वदेश का प्यार नहीं।
कविता मन, वाणी और बुद्धि का उल्लास है। इसीलिये कहा जाता है- जहाँ न पहुंचे रवि, वहाँ पहुँचे कवि। संस्कृत का एक श्लोक आज भी छोटी कक्षाओं में पढ़ाया जाता है- काव्यशास्त्र विनोदेन, कालो गच्छति धीमताम्। व्यसनेन मूर्खाणां, निंद्रिया कलहेन वा। अर्थात् बुद्धिमान व्यक्तियों का समय कविता से विनोद करने में व्यतीत होता है जबकि मूर्ख व्यक्ति या तो सोते हैं, या कलह अर्थात् झगड़ा पैदा करते हैं। अर्थात् यशपाल ने सत्य ही कहा है कि जो बा स्वर्ग है। हमें अपने बच्चों को इस स्वर्ग से दूर नहीं करना चाहिये। उन्हें इंजीनियर, डॉक्टर या आईएएस बनायें किंतु कविता गुनगुनाने वाला, न कि कविता से झिझकने वाला। मैं भाग्यशाली हूँ कि पिताजी ने हमें कविता से जोडे रखा, रोबोट नहीं बनने दिया। खेद है कि अब बच्चे कविता याद करने की जगह फिल्मी गीतों की अंतराक्षी खेलते हैं।
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