Thursday, December 31, 2009

ऐसे तो कोपेनहेगन नो-पेनहेगन से फ्लॉपेनहेगन हो जायेगा!

अमरीका ने कोपेनहेगन में आयोजित धरती सम्मेलन में भारत और चीन के साथ एक अबाध्यकारी और धुंधली सी संधि करके यह प्रतिबद्धता दर्शाने का प्रयास किया था कि वह धरती को चढ़ते बुखार से चिंतित है और वह को-पेन हेगन (हमदर्द हेगन) को नो-पेन हेगन (बेदर्द हेगन) नहीं बनने देगा किंतु केवल पन्द्रह दिनों में ही अमरीका ने भारत से खरीदे जा रहे सैण्ड स्टोन पर प्रतिबंध लगाकर इसे फ्लॉप-एन हेगन (असफल हेगन) बनने के कगार पर धकेल दिया है। आज पूरी दुनिया में भारत से मोटे तौर पर तीन तरह के पत्थरों का निर्यात होता है- संगमरमर, ग्रेनाइट तथा सैण्ड स्टोन। इनमें से संगमरमर और ग्रेनाइट महंगे पत्थर हैं तथा प्रसंस्करण के बाद ही काम आते हैं जबकि सैण्ड स्टोन एक सस्ता पत्थर है और बिना प्रसंस्करण के ही भवन निर्माण जैसे कार्यों में लगता है। विगत दिनों अमरीकी राष्ट्रपति अपनी चीन यात्रा में इस बात के संकेत दे चुके हैं कि वे चीन के साथ नये व्यापारिक सम्बन्ध बनायेंगे और ऐसा करने के लिये वे चीन को एशियाई देशों का नेतृत्व सौंपने में भी नहीं हिचकिचायेंगे। इसलिये समझा जा सकता है कि विगत आधी शताब्दी से भारत से आयात किये जा रहे सैण्ड स्टोन को अब अमरीका यह कहकर खरीदने से क्यों मना कर रहा है कि भारतीय खदानों में बाल श्रमिक इस पत्थर को खोदते हैं! जबकि पर्दे के पीछे की सच्चाई यह है कि इससे चीनी हित जुÞडेÞ हुए प्रतीत होते हैं। चीन विगत आधी शताब्दी से भारत से संगमरमर और ग्रेनाइट से बनी सामग्री खरीदता था। विगत एक दशक में चीन ने भारत से तैयार सामग्री खरीदना बंद करके संगमरमर तथा ग्रेनाइट के ब्लॉक खरीदने आरंभ कर दिये।
चीन पत्थर के इन ब्लॉक्स का दो तरह से उपयोग करता है। पहला उपयोग तो यह कि चीन उनसे विभिन्न प्रकार की सामग्री तैयार करके अंतर्राष्ट्रीय बाजार में निर्यात करता है जिससे उसके श्रमिकों को रोजगार और देश को अधिक वैदेशिक मुद्रा मिल सके। चीन इस पत्थर का दूसरा उपयोग इसे सीधे ही दुनिया के दूसरे देशों को बेच कर मुनाफा वसूलने में करता है। अमरीका और उसके मित्रों द्वारा चीन को प्रश्रय दिये जाने के कारण भारतीय पत्थर व्यवसायी एवं निर्यातक दुनिया के बाजारों में पिट रहे हैं और चीन उस पत्थर से करोड़ों डॉलर कमा रहा है।
इस प्रकार चीन पहले ही भारत के ग्रेनाइट और संगमरमर से तैयार चीजें खरीदना बंद करके भारतीय श्रमिकों को बेरोजगारी की ओर धकेल चुका है और अब अमरीका भी भारत से सैण्ड स्टोन खरीदना बंद करके इस प्रक्रिया को बढ़ावा देगा। अकेले राजस्थान में सैण्ड स्टोन के खनन, परिवहन एवं निर्यात व्यवसाय से जुडे दो लाख लोग बेरोजगार हो जायेंगे। अमरीका और चीन यदि वास्तव में धरती के बुखार को उतारने की इच्छा रखते हैं तो उन्हें दो काम करने होंगे। चीन भारत से ग्रेनाइट और संगमरमर के ब्लॉक्स खरीदने की बजाय तैयार माल खरीदने की नीति अपनाये तथा अमरीका भारत से सैण्ड स्टोन खरीदने पर प्रतिबंध न लगाये। अन्यथा भारतीय पत्थर उद्योग में लगे श्रमिक, व्यवसायी एवं अन्य लोग नि:संदेह ऐसे कामों की तरफ जायेंगे जिनके कारण को-पेनहेगन को नो-पेन हेगन या फ्लोप-एन हेगन बनने से कोई नहीं रोक सकेगा।
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