Friday, December 18, 2009

कोपेनहेगन के अमृत और विष का बंटवारा किस आधार पर हो!

कोपेनहेगन पृथ्वी सम्मेलन रूपी समुद्र-मंथन से निकले अमृत और विष का बंटवारा किस आधार पर हो! 7 से 18 दिसम्बर तक इसी बंटवारे का कोई सर्वमान्य फार्मूला निकालने की माथापच्ची चल रही है। विकसित कहे जाने वाले सम्पन्न देश यह चिंता तो जताते हैं कि कार्बन उत्सर्जन में कमी होनी चाहिये किंतु वे इस कमी का बीड़ा स्वयं नहीं उठाना चाहते। वे चाहते हैं कि कार्बन उत्सर्जन से होने वाले विकास की वारुणि उन्हें सदैव निर्बाध रूप से प्राप्त होती रहे और कार्बन उत्सर्जन का विषपान विकासशील देशों के माथे मढ़ दिया जाये। विकसित देश चाहते हैं कि विकसित, विकासशील एवं अविकसित देशों में 20 से 25 प्रतिशत कार्बन ऊत्सर्जन कटौती की जाये। देखने में तो यह फार्मूला न्याय संगत लगता है कि सब देशों में बराबर कार्बन कटौती हो किंतु इस फार्मूले में छिपी कड़वी सच्चाई कुछ और है। यह ठीक वैसा ही है जैसा कि बैल, ऊँ ट, घोडेÞ और गधे आदि पशुओं की पीठ पर समान भार लाद दिया जाये और यह दावा किया जाये कि हमने सबके साथ बराबरी का व्यवहार किया है। आज भारत में प्रति-व्यक्ति, प्रति-वर्ष ऊर्जा देने के लिये 510 किलोग्राम आॅयल के बराबर र्इंधन जलाया जाता है जबकि चीन में 1500 किलो, अमरीका में 7778 किलो और कनाडा में 8262 किलो आॅयल के बराबर र्इंधन जलाया जाता है। यदि इस ऊर्जा में से चौथाई हिस्से की कटौती कर दें तो भारत में प्रतिव्यक्ति, प्रतिवर्ष 382 किलो तेल जलाने जितनी ऊर्जा मिलेगी। जैसे-जैसे आबादी बढ़ती जायेगी, प्रति व्यक्ति ऊर्जा की उपलब्धता कम होती जायेगी। जबकि चीन को भारत से तीन गुनी, अमरीका को पन्द्रह गुनी और कनाडा को सोलह गुनी ऊर्जा मिलती रहेगी। कार्बन उत्सर्जन में पच्चीस प्रतिशत कटौती के फार्मूले को लागू करने के दस सालों बाद जब हम दुनिया का आर्थिक मानचित्र देखेंगे तब भारत की आबादी सवा गुनी हो चुकी होगी किंतु ऊर्जा की कमी के कारण देश में अनाज, पेयजल, दवायें, कपड़े और आवास की भयानक समस्या उत्पन्न हो चुकी होगी। भारत अत्यंत पिछड़ा, निर्धन और अशक्त देश दिखाई देगा जबकि चीन भारत से तीन गुनी ऊर्जा की खपत करके भारत में आने वाली सैंकड़ों नदियों को बांध बनाकर रोक लेगा। वह हमारी सीमाओं का अतिक्रमण करके बड़े भू-भाग दाब लेगा और हमारी सामरिक क्षमताओं के मुकाबले में वह अत्यधिक ताकतवर हो जायेगा। अमरीका और कनाडा हमसे पंद्रह- सोलह गुनी ऊर्जा का उपयोग करके आज से भी अधिक विकसित, शक्तिशाली और सम्पन्न देशों का रूप ले चुके होंगे। भारत चाहता है कि सन् 2012 तक समस्त घरों में बिजली पहुंचे। यदि कोपेनहेगन संधि के बाद भारत पर भी कार्बन उत्सर्जन में 25 प्रतिशत की कटौती लागू की गई तो सन् 2012 तो क्या, आने वाली कई सदियों तक भारत के करोड़ों लोग बिजली का प्रकाश नहीं देख सकेंगे। इसलिये कोपेनहेगन में कार्बन कटौती का फार्मूला तय करने का आधार केवल यह होना चाहिये कि दुनिया में प्रत्येक व्यक्ति को प्रति वर्ष उपभोग के लिये कितनी ऊर्जा उपलब्ध रहे। इसके अतिरिक्त कोई भी फार्मूला दुनिया के देशों के साथ न्याय नहीं कर सकेगा।
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