Monday, June 7, 2010

एक कागज बनाने में कितने गिलास पानी लगता है!

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
राजस्थान में पानी की भयंकर कमी हो गई है। राज्य के 237 में से 198 ब्लॉक डार्क जोन में चले गये हैं, और बचे हुए भी डार्क जोन में जाने को तैयारी हैं। इसलिये इन दिनों कुछ समझदार लोग जल संरक्षण के प्रति जागरूक हो गये हैं। नगर की एक प्रतिष्ठित शिक्षण संस्था के प्रिंसीपल जो कि देश के प्रख्यात शिक्षाविद् भी हैं, ने मुझे इसी संदर्भ में एक जोरदार बात कही। वे बोले कि मैं इन दिनों अपनी स्कूल के बच्चों को पानी व्यर्थ होने से बचाने के नुस्खे समझा रहा हूँ। उन नुस्खों में एक नुस्खा यह भी शामिल था कि जब घर में कोई अतिथि आये तो आप उनसे आदर पूर्वक पूछें कि क्या आप पानी पियेंगे ? यदि वे पानी पीने की इच्छा व्यक्त करें तो उनके लिये आप पानी लायें। बात सही थी, घर में अतिथियों के आगमन पर हम पूरे-पूरे गिलास भर कर उन्हें पानी आॅफर करते हैं। कई अतिथियों को पानी की आवश्यकता नहीं होती, इस कारण कई गिलास पानी प्रतिदिन व्यर्थ चला जाता है। मैंने भी प्रिंसीपल साहब के इस नुस्खे का समर्थन किया। संयोगवश कल मुझे एक स्कूल में जाना पÞडा। मेरी पुत्री विगत कई बरसों से वहां पÞढती है। इस बरस वह दसवीं कक्षा उत्ताीर्ण करके ग्यारहवीं में आई है। यही वह सोपान होता है जहां बच्चे को विज्ञान, वाणिज्य अथवा कला विषय चुनने होते हैं। विषयों के चयन के लिये निर्धारित फार्म, बोर्ड की परीक्षाओं से पहले ही स्कूल मैनेजमेंट ने भरवा लिये थे। जब दसवीं की परीक्षा का रिजल्ट आ गया तो मुझे पता लगा कि एक और फार्म भरना है। मैं उसी फार्म को भरने के लिये स्कूल गया था। मुझे यह देखकर अत्यंत आश्चर्य हुआ कि उस नये फार्म में जो जानकारियां मांगी गई थीं, वे केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड द्वारा जारी अंक तालिका में दी गई हैं। इतना ही नहीं, स्कूल क्लर्क ने यह भी कहा कि आप इण्टरनेट से डाउनलोड अंकतालिका की एक छाया प्रति भी इस फार्म के साथ लगायें।
मैंने स्कूल काउण्टर पर बैठे क्लर्क से कहा कि आप यह फार्म क्यों भरवा रहे हैं ? इस सम्बन्ध में एक फार्म पहले ही भरा जा चुका है और नये फार्म में केवल वही बातें पूछी गई हैं जो कि बोर्ड द्वारा जारी अंक तालिका में दी हुई हैं। आप बिना मतलब कागज, समय, लोगों की ऊर्जा, उनके स्कूल तक आने जाने का पैट्रोल बर्बाद कर रहे हैं। इतना सुनते ही उन्होंने मुझे हैरानी से देखते हुए कहा- और लोग भी तो भर रहे हैं? आपको क्या परेशानी है? मैंने कहा, भाई! जिन मां-बाप को अपने बच्चे आपके स्कूल में पÞढाने हैं, वे आपकी सब बातें मानेंगे, किंतु आप भी तो सोचिये कि आप देश का कागज, पैट्रोल और बिजली खराब क्यों कर रहे हैं? मेरी बात बाबूजी की समझ में, न तो आनी थी और न आई। वे झल्ला कर बोले, आपको फार्म नहीं भरना है तो मत भरिये, मुझे तंग क्यों कर रहे हैं! देश का आम नागरिक होने के कारण मैं बाबूजी को आगे कुछ कहने की स्थिति में नहीं था, सो कुछ नहीं कह सका किंतु मन में यह सोचता हुआ स्कूल की सीिढयों से उतरा कि एक ओर वे प्रिंसीपल हैं जो एक-एक गिलास पानी के लिये चिंतित हैं और दूसरी तरफ कुछ लोग इतना भी नहीं जानते कि एक कागज बनाने में कितने गिलास पानी लगता है!
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