डॉ. मोहनलाल गुप्ता
इसी 12 फरवरी की बात है जब गोकुलभाई भट्ट के 113वें जन्म दिवस पर आयोजित एक सार्वजनिक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने वक्तव्य दिया था कि शादियों में धन का भौण्डा प्रदर्शन करने वाले बेशर्म हैं। महंगी शादियों में जाकर मैं स्वयं भी शर्मसार हो जाता हूँ। शादियों में 10-10 हजार लोगों का खाना, और एक-एक प्लेट हजार रुपये की! लोग एक-एक कार्ड 500 से 2000 रुपये तक का छपवाते हैं! ऐसे लोग जब शानो शौकत का प्रदर्शन करते हुए महंगी गाड़ियों में विवाह के कार्ड देने आते हैं तो मूड खराब हो जाता है! मुख्यमंत्री के ये शब्द ऐतिहासिक हैं जो शताब्दियों तक स्मरण रखे जाने के योग्य हैं। ये शब्द आज मुझे अचानक ही फिर से याद आ गये।
बात यह हुई कि इस बार अप्रेल-मई माह में मेरे पास विवाह के 10 वैवाहिक निमंत्रण आये हैं, यद्यपि मैंने एक नियम बना रखा है कि जब तक सगे-सम्बन्धी अथवा पारिवारिक मित्र के यहां विवाह न हो, मैं विवाह समारोह में नहीं जाता, इसलिये इस बार भी मैं, एक भी विवाह में नहीं गया किंतु इस बार मुझे यह देखकर हैरानी हुई कि मेरे पास जो 10 निमंत्रण पत्र आये, उन सभी का आकार अपेक्षाकृत काफी कम था। तो क्या, मुख्यमंत्री का जादू चल गया! कार्डों के आकार छोटे होने लगे!वास्तव में यह देखकर हैरानी होती है और ग्लानि भी होती है कि जब भारत सरकार का योजना आयोग यह कह रहा है कि इस देश में 38 प्रतिशत परिवार गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन कर रहे हैं, उनके घरों में दोनों समय चूल्हा नहीं जलता, तब कुछ लोग दस-दस हजार लोगों को भोजन करवाते हैं! मानो वैवाहिक समारोह नहीं करके शक्ति प्रदर्शन कर रहे हों!
लगे हाथों आजकल करोड़पतियों के विवाहों में चले नये प्रचलन की भी बात कर ली जाये। अमरीका और यूरोपीय देशों में रहने वाले कोट्याधिपति भारतीयों में आजकल नया ट्रेंड चला है। वे अपने बच्चों के विवाह के लिये भारत आते हैं। वैवाहिक समारोह के लिये कल्चरल हैरिटेज घोषित पुराने किलों और हवेलियों को किराये पर लेते हैं। वे पाँच-दस दिन उनमें ठहरते हैं। इस दौरान उस किले या हवेली में केवल वे कोट्याधिपति लोग और उनके निकट रक्त सम्बन्धी अथवा पारिवारिक मित्र ही प्रवेश कर सकते हैं। इस दौरान पूरा वातावरण पारिवारिक होता है। कोई भी दो चेहरे वहाँ ऐसे नहीं होते, जो एक दूसरे के लिये अपरिचित हों। किसी तरह का शक्ति प्रदर्शन, भीड़-भाड़, रेला-ठेला, धक्का-मुक्की और प्लेटों की खींचतान नहीं होती। इस प्रचलन को देखकर मेरे मस्तिष्क में सदैव यह प्रश्न उठता है- जब वे इतने पैसे वाले होकर भी अपने विवाह समारोह को इतने कम लोगों तक सीमित रख सकते हैं तो मध्यम आय वर्ग के लोग क्यों नहीं! पैसे वालों और समाज के ताकतवर लोगों को सोचना चाहिये कि जब राम, कृष्ण, बुद्ध और महावीर जैसे बड़े-बड़े राजकुमार समाज के हित के लिये अपने महलों को छोÞडकर जंगलों और युद्ध के मैदानों में चले गये। उन्होंने सोने के सिंहासन त्यागकर काषाय वस्त्र अथवा वीरवेश धारण कर लिये तब ऐसी कौनसी बाधा है जो हमें उनके आदर्शों को अपनाने से रोकती है! संसार का ऐसा कौनसा धर्म है जिसमें सादा जीवन अपनाने पर जोर नहीं दिया गया हो!
Monday, May 17, 2010
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