Tuesday, April 27, 2010

धरती के भगवानो! क्या औरत के बिना दुनिया चल सकती है!

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
अहमदाबाद में कचरे की पेटी में पडे हुए 15 कन्या भू्रण मिले। कुछ भू्रण कुत्ते खा चुके थे, वास्तव में भू्रणों की संख्या 15 से कहीं अधिक थी। ये तो वे भू्रण थे जो रास्ते पर रखी कचरे की पेटी में फैंक दिये जाने के कारण लोगों की दृष्टि में आ गये। यह कार्य तो पता नहीं चोरी-चोरी कब से चल रहा होगा! टी वी के पर्दे पर इस हृदय विदारक दृश्य को देखकर आत्मा कांप उठी। यह कैसी दुनिया है जिसमें हम रह रहे हैं! ये कौनसा देश है जिसकी दीवारों पर मेरा भारत महान लिखा हुआ रहता है किंतु कचरे के ढेरों में कन्याओं के भू्रण पडे मिलते हैं!
क्या इसमें कोई संदेह है कि ये भ्रूण उन्हीं माताओं के गर्भ में पले हैं जिनकी सूरत में संतान भगवान का चेहरा देखती है! क्या इसमें भी कोई संदेह है कि ये गर्भपात उन्हीं पिताओं की सहमति और इछा से हुए हैं जिन्हें कन्याएं भगवान से भी अधिक सम्मान और प्रेम देती हैं! क्या इसमें भी कोई संदेह है कि ये गर्भपात उन्हीं डॉक्टरों ने करवाये है जिन्हें धरती पर भगवान कहकर आदर दिया जाता है!
देश में हर दिन कचरे के ढेर पर चोरी-चुपके फैंक दिये जाने वाले सैंकÞडों कन्या भू्रण धरती के भगवानों से चीख-चीख कर पूछते हैं कि क्या औरतों के बिना यह दुनिया चल सकती है! इस सृष्टि में जितने भी प्राणी हैं उन्होंने अपनी माता के गर्भ से ही जन्म लिया है। भगवानों के अवतार भी माताओं के गर्भ से हुए हैं। जब माता ही नहीं होगी, तब संतानों के जन्म कैसे होंगे। यदि हर घर में लडके ही लडके जन्म लेंगे तो फिर लÞडकों के विवाह कैसे होंगे। जिस वंश बेल को आगे बढाने के लिये पुत्र की कामना की जाती है, उस पुत्र से वंश बेल कैसे बÞढेगी यदि उससे विवाह करने वाली कोई कन्या ही नहीं मिलेगी!
आज भारत का लिंग अनुपात पूरी तरह गÞडबÞडा गया है। उत्तार भारत में यह कार्य अधिक हुआ है। लाखों लोगों ने अपनी कन्याओं को गर्भ में ही मार डाला। दिल्ली, पंजाब और हरियाणा देश के सर्वाधिक समृद्ध, शिक्षित और विकसित प्रदेश माने जाते हैं, इन्हीं प्रदेशों में गर्भपात का जघन्य अपराध सर्वाधिक हुआ। मध्य प्रदेश और राजस्थान भी किसी से पीछे नहीं।
जब से लोगों के मन में धर्म का भय समाप्त होकर पैसे का लालच पनपा है और ईश्वरीय कृपा के स्थान पर पूंजी और टैक्नोलोजी पर भरोसा जमा है, तब से औरत चारों तरफ से संकट में आ गई है। पिताओं और पतियों के मन में चलने वाला पैसे का गणित, औरतों के जीवन के लिये नित नये संकट ख़डे कर रहा है।
एक तरफ तो औरतों को पÞढने और कमाने के लिये घर से बाहर धकेला जा रहा है। दूसरी ओर सनातन संस्कारों और संस्कृति से कटा हुआ समाज औरतों को लगातार अपना निशाना बना रहा है। यही कारण है कि न्यूज चैनल और समाचार पत्र महिलाओं के यौन उत्पीÞडन, बलात्कार और कन्या भू्रण हत्याओं के समाचारों से भरे हुए रहते हैं। आरक्षण, क्षेत्रीयता और भाषाई मुद्दों पर मरने मारने के लिये तुले रहने की बजाय हमें अपने समाज को सुरक्षित बनाने पर ध्यान देना चाहिये, इसी में सबका भला है।
blog comments powered by Disqus