Thursday, March 4, 2010

दीदी नहीं बॉस कहो!

डॉ. मोहनलाल गुप्ता
वे दोनों एक ही गली में रहती हैं। उन दोनों की उम्र में केवल एक साल का अंतर है। दोनों एक दूसरे को अच्छी तरह जानती हैं। पहली लड़की नगर के एक प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेज के द्वितीय वर्ष की छात्रा है। दूसरी लड़की ने उसी कॉलेज के पहले वर्ष में प्रवेश लिया है। दोनों लड़कियां साल के पहले दिन कॉलेज बस पकड़ने के लिये एक ही स्टॉप पर आ खड़ी होती हैं। पहले वर्ष की लड़की, दूसरे वर्ष में पढ़ने वाली लड़की का अभिवादन करती है, नमस्ते दीदी। दूसरी लड़की भड़क कर जवाब देती है, दीदी नहीं, बॉस कहो। पहले वर्ष में प्रवेश लेने वाली लड़की हैरान है ! इसे क्या हुआ ? कल तक तो ऐसी कोई बात नहीं थी। आज दोनों एक कॉलेज में आ गर्इं तो दीदी, बॉस बन गर्इं ! पहले वर्ष की लड़की ने भी तुनक कर कहा, काहे की बॉस। इसके बाद पूरा साल बीत गया, दोनों लड़कियां अब एक दूसरे से बात नहीं करतीं। यह कहानी किसी एक शहर की किसी एक गली की नहीं है, हिन्दुस्तान की गलियां ऐसी कहानियों से भरी पड़ी है। एक समय था जब एक गली, मुहल्ले में रहने वाली लड़कियां बहिनों की तरह बर्ताव करती थीं। वे एक दूसरे को संरक्षण भी देती थीं किंतु बदले हुए युग धर्म में अब वे बहिनें नहीं रही हैं, बॉस और सबॉर्डिनेट बन गई है। वरिष्ठ सहपाठिनें कभी भी बॉस नहीं हुआ करती थीं। पर अब कॉलेजों में यह विचित्र बॉसिज्म आया है। वरिष्ठ छात्र अपने आप को कनिष्ठ छात्रों से बॉस कहलवा कर उनसे आदर प्राप्त करने की भौंडी चेष्टा करते हैं। यही वह मानसिकता है जो कॉलेजों से रैंगिंग के प्रेत को बाहर नहीं जाने देती। इसी मानसिकता ने देश के कई कॉलेजों में पढ़ रहे भावी इंजीनियरों और डॉक्टरों को हमसे छीन लिया। बॉस कहलवाने और उन पर अपनी दादागिरी थोपने की चेष्टा में कई सीनियर छात्रों ने अपने जूनियर छात्रों को नंगा करके कॉलेजों की बॉलकनी से लटका दिया। हमारे देश की बहुत सी शिक्षण संस्थाओं में छात्र-छात्राओं को परस्पर भैया-बहिन कहलवाने की परम्परा रही है। यहां तक कि शिक्षकों को भी भैयाजी अथवा बहिनजी कहा जाता है। मारवाÞड में तो प्राय: हर विद्यालय में महिला अध्यापक को बहिनजी कहा जाता रहा है। पाश्चात्य देशों में नर्सिंग व्यवसाय आरंभ हुआ, उन्होंने नर्स को अनिवार्यत: सिस्टर कहने की परम्परा विकसित की। जो अपनत्व, परस्पर विश्वास और सुरक्षा का भाव जीजी, दीदी, बहिनजी या सिस्टर कहने से प्रकट होता है, वह अपनत्व बॉस शब्द से कैसे मिल सकता है! फिर भी हमारी नई पीढ़ी दीदी और बहिनजी जैसे शब्दों को बॉस शब्द से प्रतिस्थापित करना चाहती है, इसे एक विडम्बना ही कहा जाना चाहिये। बात जब निकलती है तो दूर तक जाती है। यह बात भी केवल शिक्षण संस्थानों तक जाकर समाप्त नहीं होती। पहले बाजार, रेलवे स्टेशन अथवा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर अपरिचित महिलाओं से बात करते समय लोग बहिनजी अथवा बीबीजी कहकर सम्बोधित करते थे किंतु अब उन्हें मैडम कहा जाता है। संभवत: इसी कारण सामाजिक सुरक्षा का चक्र टूटकर बिखर गया है।
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