डॉ. मोहनलाल गुप्ता
आईपीएल को आज भले ही सैक्स (नंगापन), स्लीज (बेशर्मी) और सिक्सर्स (छक्को) का खेल कहा जा रहा हो किंतु वास्तव में यह स्त्री, शराब और सम्पत्ति का खेल है। जिन लोगों ने आई पी एल खड़ी की, उन लोगों ने स्त्री, शराब और सम्पत्ति जुटाने के लिये मानव गरिमा को नीचा दिखाया तथा भारतीय संस्कृति को गंभीर चुनौतियां दीं। केन्द्रीय खेल मंत्री एम. एस. गिल आरंभ से ही आई पी एल के मैदान में चीयर गर्ल्स के अधनंगे नाच तथा शराब परोसने के विरुद्ध थे। राजस्थान सरकार ने जयपुर में चीयर गर्ल्स को अधनंगे कपड़ों में नाचने की स्वीकृति नहीं दी और न ही खेल के मैदान में शराब परोसने दी।
जिस समय पूरे विश्व को मंदी, बेरोजगारी और निराशा का सामना करना पड़ा, वहीं हिन्दुस्तान में सबकी आंखों के सामने आईपीएल पनप गया। अरबों रुपयों के न्यारे-वारे हुए। सैंकड़ों करोड़ रुपये औरतों और शराब के प्यालों पर लुटाये गये। सैंकड़ों करोड़ रुपये प्रेमिकाओं पर न्यौछावर किये गये। सैंकड़ों करोड़ का सट्टा हुआ। सैंकड़ों करोड़ का हवाला हुआ और सैंकड़ों करोड़ रुपयों में क्रिकेट खिलाड़ियों की टीमें बोली लगकर ऐसे बिकीं जैसे भेड़ों के झुण्ड बिकते हैं। शिल्पा शेट्टी जैसी फिल्मी तारिकायें सिल्वर स्क्रीन से उतर कर खेल के मैदानों में छा गर्इं। विजय माल्या जैसे अरबपतियों के पुत्र और सौतेली पुत्रियां आई पी एल की पार्टियों में ललित मोदी और कैटरीना कैफ जैसे स्त्री-पुरुषों से लिपट-लिपट कर उन्हें चूमने लगे।
जिस समय पूरा विश्व मंदी की चपेट में था, तब भारत में महंगाई का दैत्य गरज रहा था। किसी की समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर यह कैसे संभव है कि जब पूरी दुनिया मंदी की मार से जूझ रही है, भारत में दालों के भाव सौ रुपये किलो को छू रहे हैं! चीनी आसमान पर जा बैठी। दूध 32 रुपये किलो हो गया। मिठाइयों में जहर घुल गया। रेलवे स्टेशनों पर दीवार रंगने के डिस्टेंपर से बनी हुई चाय बिकने लगी। जाने कब और कैसे जनता की जेबों में एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये के नकली नोट आ पहुंचे।
आज हम इस बात का अनुमान लगा सकते हैं कि भारत के धन के तीन टुकड़े हुए। एक लाख 70 हजार करोड़ रुपये तो नकली नोटों के बदले आतंकवादियों और तस्करों की जेबों में पहुंचे। पच्चीस लाख करोड़ रुपये स्विस बैंकों में जमा हुए और हजारों करोड़ रुपये (अभी टोटल लगनी बाकी है) आई पी एल के मैदानों में दिखने वाली औरतों के खातों में पहुंच गये। ये ही वे तीन कारण थे जिनसे भारत में महंगाई का सुनामी आया।
एक तरफ जब देश में आई पी एल का अधनंगा नाच चल रहा था, तब दूसरी तरफ भारत का योजना विभाग यह समझने में व्यस्त था कि भारत में गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वालों की संख्या कितनी है ताकि राज्यों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत अनाज का आवंटन किया जा सके। योजना आयोग की तेंदुलकर समिति ने भारत में बीपीएल परिवारों की संख्या 38 प्रतिशत बताई है किंतु कुछ राज्यों में यह 50 प्रतिशत तक हो सकती है। आई पी एल देखने वालों की जानकारी के लिये बता दूं कि बीपीएल उसे कहते हैं जिसे जीवन निर्वाह के लिये 24 घण्टे में 2100 कैलोरी ऊर्जा भी नहीं मिलती। यही कारण है कि आई पी एल और बीपीएल के बीच हिन्दुस्तान आठ-आठ आँसू रो रहा है।
Sunday, April 25, 2010
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