भारत के कई पुराणों में वर्णन मिलता है कि वैवस्वत मनु के समय में बर्फ पिघलने या मौसम के भीषण परिवर्तन के कारण धरती पर चारों ओर पानी ही पानी हो गया। इसे भारत का दूसरा महा जल प्लावन कहा जा सकता है। नि:संदेह उस समय के हिम ग्लैशियर जनसंख्या के बढ़ने, जंगलों के कटने, कार्बन डाई आॅक्साइड या क्लोरो फ्लोरो कार्बन जैसी गैसों के बढ़ने से नहीं पिघले थे। न ही उस समय ग्रीन हाउस इफैक्ट जैसी किसी चीज ने धरती पर जन्म लिया था। काठक संहिता, तैत्तारीय संहिता, अतैत्तारीय ब्राह्मण तथा शतपथ ब्राह्मण आदि ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि एक बार सारी पृथ्वी पर सर्वंतक अग्नि से भयंकर दाह हुआ।
तदनन्तर एक वर्ष की अतिवृष्टि से महान् जन प्लावन आया। सारी पृथ्वी जल निमग्न हो गई। वृष्टि की समाप्ति पर जल के शनै:शनै: नीचे होने से कमलाकार पृथ्वी प्रकट होने लगी। इस समय उन जलों में श्री ब्रह्माजी ने योगज शरीर धारण किया। सृष्टि वृद्धि को प्राप्त हुई। तब बहुत काल के पश्चात् समुद्रों के जलों के ऊँचा हो जाने से एक दूसरा जल प्लावन वैवस्वत मनु और यम के समय आया। इन दो महा जलप्लावनों के अतिरिक्त लघु जलप्लावन भी संसार में आते ही रहे हैं। ईसा से 1400 साल पहले आये एक ऐसे ही जल प्लावन में कृष्णजी की द्वारिका समुद्र में समा गई। विभीषणजी की लंका भी एक ऐसे ही जल प्लावन के कारण समुद्र में डूब गई थी। तमिल साहित्य में वर्णित दो जल प्लावनों में से एक जलप्लावन में दक्षिण में स्थित कपाटपुरम् तथा दूसरे जल प्लावन में पुरानी मदुरा जल में डूब गई थी। कश्मीर के नीलमत पुराण में कश्मीर में आये प्रलय का विशद वर्णन है । स्पष्ट है कि इन सारे जलप्लावनों का कारण वायुमण्डल के तापमान में अत्यधिक वृद्धि होना रहा होगा किंतु तापमान में वृद्धि किसी मानवीय कारण से नहीं आई होगी। न जनसंख्या बढ़ने से, न जंगलों की कटाई से और न सीओटू या सीएफसी में वृद्धि से। ताण्ड्य महाब्राह्मण में सरस्वती के लुप्त होने का उल्लेख है जबकि जैमिनी ब्राह्मण में उसके लुप्त होकर पुन: प्रकट होने का उल्लेख है। ऐतरेय ब्राह्मण सरस्वती की स्थिति मरुप्रदेश से कुछ दूरी पर बताता है। एक पुराण में सरस्वती की स्थिति रेत में पÞडी उस नौका के समान बताई गई है जिसके तल में छेद हैं। माना जाता है कि सरस्वती धरती में घुस गई। कालीदास ने भी सरस्वती को अंत:सलिला कहकर सम्बोधित किया है। भूकम्प भी समुद्री एवं भूगर्भीय जल स्तरों को बुरी तरह प्रभावित करते हैं। लातूर के भूकम्प के दौरान महाराष्ट्र में कई स्थानों पर जल की धाराएं फूट पÞडी थीं। कुछ वर्ष पहले आया सुनामी भी समुद्री क्षेत्र में आया एक भूकम्प ही था। इसी प्रकार बाड़मेर क्षेत्र में विगत दो माह पूर्व आये भूकम्प के बाद वैज्ञानिकों ने चिंता जताई थी कि इससे इस क्षेत्र का तेल बहकर पाकिस्तान की ओर ेसरक सकता है। ये सारे उदाहरण गिनाने का उद्देश्य यह है कि जलवायु परिवर्तन की समस्या केवल मानव जनित नहीं हैं, इसमें नैसर्गिक बदलावों की भारी भूमिका है। कहीं बड़े, धनी और ताकतवर देश जलवायु परिवर्तन को मनुष्य जनित संकट बताकर छोटे, विकासशील, अविकसित अथवा निर्धन देशों का गला घोंटने में सफल नहीं जायें।
Monday, December 14, 2009
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