पति दुखी हैं, परेशान हैं, अपनी ही पत्नियों के अत्याचार से दुखी होकर धरना दे रहे हैं। पत्नियों ने 498 ए का दुरुपयोग करके पतियों को इस हाल तक पहुंचाया है। इस लड़ाई में बहुतों के घर बरबाद हुए हैं। बहुत से बूÞढेÞ मां-बाप थाने के लॉकअप में बंद हुए हैं तो बहुत से जेल भी भुगत आये हैं। बहुत सी नणदें विवाह की उम्र को पार करके कुंआरी ही रह गई हैं क्योंकि उन पर भाभियों ने दहेज उत्पीड़न के आरोप लगाये हैं। बहुत से जेठ और देवर घरों से गायब हो गये हैं क्योंकि वे 498 ए के शिकंजे में फंसना नहीं चाहते। कुछ बहुओं ने अपने श्वसुर सहित गृह के पूरे परिवार को थाने के लॉकअप में बंद करवा दिया और कुछ श्वसुर इस सदमे से हार्ट अटैक से मर गये। कई पति हर तरह की ज्यादती सहन करने के बाद भी पत्नी को घर लाना चाहते हैं ताकि मुकदमे खत्म हों और उनके परिवार में शांति लौट सके। कुछ नौजवान अपनी गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा, पीहर जा बैठी पत्नियों को चुका रहे हैं और उस पत्नी के मां-बाप हर महीने की बंधी कमाई के लालच में बेटी को उसके ससुराल जाने नहीं देते। एक पति ने अपनी मां और पत्नी के झगड़े से तंग आकर पत्नी को चांटा मार दिया। पत्नी को चांटा इतना नागवार गुजरा कि वह अपने दो बच्चों को लेकर पीहर चली गई। अब पति हर महीने कोर्ट में रुपये जमा करवाता है। पत्नी गुमसुम है, उसके पीहर वाले उन रुपयों पर मौज कर रहे हैं।
यह तो रहा सिक्के का एक पहलू। दूसरा पहलू कल के अखबारों में ही देखा जा सकता है। सिरोही एवं जालोर जिले के अम्बाजी तथा ओटलावा गांवों में पतियों द्वारा अपनी पत्नियों को चाकू घोंपकर मार डालने की खबर छपी है। पतियों के आरोप हैं कि उन्होंने अपनी पत्नी को किसी दूसरे पुरुष के साथ देख लिया था जबकि पत्नियों के घर वालों के आरोप हैं कि ये दहेज हत्या के मामले हैं। यह हो ही नहीं सकता कि दुनिया की सारी पत्नियां अपने पति को 498 ए में फंसा दें या दुनिया के सारे पति अपनी पत्नी के चरित्र पर संदेह करके उन्हें चाकू घौंप कर मार डालें। खराबी तो दोनों तरफ किसी में भी हो सकती है किंतु जब किसी एक पक्ष को कोई प्रबल सहारा मिल जाता है तो वह उसका दुरुपयोग करने से नहीं चूकता। खराबी 498 ए में नहीं है, खराबी उसके दुरुपयोग में है। 498 ए भारतीय समाज में औरत की कमजोर आर्थिक एवं सामाजिक स्थिति को देखते हुए बनी थी किंतु कुछ औरतों अथवा उनके मां-बाप ने उसका दुरुपयोग करके यह स्थिति पैदा कर दी है कि जिन औरतों को वास्तव में 498 ए के सहारे की आवश्यकता है, वे भी दूसरे पक्ष द्वारा संदेह के घेरे में ख़डी की जा रही हैं। संत तिरुवल्लुवर का एक प्रसिद्ध किस्सा है, किसी ने उनसे पूछा कि पत्नी कैसी होनी चाहिये! उन्होंने कहा कि अभी बताता हूँ और अपनी पत्नी को आवाज लगाई। पत्नी उस समय कुंए में से पानी खींच रही थी। जैसे ही उसने पति की पुकार सुनी, उसने कुंए से बाहर आती हुई पानी की भरी हुई बाल्टी छोड़ दी और तुरंत पति के पास पहुंचकर बोली, कहिये। संत ने प्रश्नकर्त्ता से कहा, पत्नी ऐसी होनी चाहिये। यह बताना भी आवश्यक होगा कि संत तिरुवल्लुवर जब भोजन करते थे तो एक सुंई अपने पास लेकर बैठते थे, यदि कोई चावल धरती पर गिर पड़ता था तो उसे सुंई से उठाकर खा लेते थे, ताकि पत्नी के हाथ से बने भोजन का अनादर न हो। पति भी ऐसा होना चाहिये। तभी समाज 498 ए के भय से मुक्त रह सकता है।
Monday, October 5, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
कहीं आप वही मोहनलाल गुप्ता तो नहीं हैं तो दैनिक भास्कर के लिए अपना व्यंग्य भेजते हैं मेरे मेल आईडी पर।
ReplyDeleteबहुत सुदर उदाहरण दिया है आपने।
ReplyDeleteThink Scientific Act Scientific
Manishaji ne sahi pahchana hai. Mujhkohi hi aap Rag Darbari Main Jagah de rahi Hain. Teesri aankh Dainik Navjyoti Jodhpur ki Prastuti hai. Thanks.
ReplyDeleteKavitaji ko bhi Dhanyavad.
Dr. Mohanlal Gupta.